नवरात्र का महत्व

नवरात्र का महत्व



नवरात्रों का भारतीय समाज में और विशेष रूप से हिन्दू समुदाय में अपना एक विशिष्ट स्थान है। नवरात्र को विश्व की आदि शक्ति दुर्गा के रूप में पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नवमी तक चलते हैं और शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाकर प्रतिपदा से नवमी तक उनकी निष्ठापूर्वक पूजा की जाती है तथा व्रत रखा जाता है। दशमी के दिन इन प्रतिमाओं को गंगा में अथवा अन्यत्र पवित्र नदियों में अथवा बहते जल में विसर्जित कर दिया जाता है। नवरात्र नवशक्तियों से युक्त हैं और प्रत्येक शक्ति का अपना-अपना महत्व है। ये भगवती अराधना मुख्य रूप से वर्ष में दो बार की जाती है। एक चैत्र में और दूसरी अश्विन में इसलिए इन्हें वासंतिक एवं शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। यह ऋतुकाल का संधिकाल होता है और इसलिए शांति एवं स्वास्थ्य के लिए दुर्गा की अराधना की जाती है। आदि शक्ति के तीन सगुण रूप हैं दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जो क्रमशः दुष्टों के मर्दन, सम्पत्ति के सम्पादन तथा ब्रहम विद्या के प्रकाशन का कार्य करती हैं। इस प्रकार दुर्गा, लक्ष्मी तथा सरस्वती की उपासना होती है


दुर्गा के नौ रूपों की अराधना की जाती है। नवरात्र के प्रथम दिन दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना की जाती है। शैलपुत्री का ध्यान एवं जपनीय मंत्र को जपा जाता है। दुर्गा की उपासना में दुर्गा सप्तसती का पाठ अत्यंत लोकप्रिय है इसमें कुल 13 अध्याय हैं। यह पाठ निष्काम एवं काम्य प्रयोग के आधार पर किये जाते हैं निष्काम एवं सर्वाधिक कामना की पूर्ति के लिए महाविद्या क्रम का पालन किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रथम, मध्यम एवं उत्तर चरित्र का पाठ किया जाता है। र होता है जो शत्रु नाश एवं लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त चंडीक्रम का पाठ है। आरोग्य प्राप्ति के लिए मृत संजीवनी पाठ क्रम है जो मध्यम, उत्तर एवं प्रथम चरित्र क्रम से किया जाता है। दूसरे दिन ब्रहमचारिणी देवी का पूजन किया जाता है। तीसरे दिन चंद्रघंटा का पूजन, चौथे दिन कुष्माण्डा का पूजन, पांचवे दिन स्कंदमाता का पूजन, छठे दिन कात्यायनी का पूजन, सातवें दिन कालरात्रि का पूजन, आठवे दिन मां गौरी का पूजन, नौंवे दिन सिद्धिदात्री का पूजन किया जाना चाहिए।


दुर्गा देवी का नवार्ण मंत्र अतिशक्तिशाली होता है। यह मंत्रा है, “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै''। यह मंत्र नौअक्षरी मंत्र है जिसमें आदि शक्ति के तीनों स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के बीज समाहित हैं। देवी उपासना में नौ अंक की प्रधनता मानी गयी है जैसे – नवरात्र, नवदुर्गा, नवमी तिथि, नवकन्या, इसी प्रकार नौ अक्षर का नवार्ण मंत्र भी उल्लेखनीय है। इस नवार्ण मंत्र में "चामुण्डायै” पद में भी नौ वर्ण हैं जिसमें पांच व्यंजन अर्थात च, म, ए, ड., य और चार स्वर आ, उ, आ, ऐ इन वर्णो का भी शक्तिशाली प्रभाव है इसलिए ये मंत्र के मध्य में रखे गये हैं। तंत्र के विद्वानों की मान्यता है कि सप्तशती के चतुर्थ अध्याय के 24वें श्लोक में देवी प्रार्थना का मंत्र ही नवार्ण मंत्र है। इसमें नौ बार 'न' गया है। शास्त्र तंत्र में नवार्ण मंत्र पर आधरित षटकर्म पूर्ति कारक मंत्रों का उल्लेख हुआ है। ये षटकर्म हैं- वशीकरण, उच्चाटन, आकर्षण, मोहन, स्तम्बन तथा मारण।


अश्विन मास में होने वाले नवरात्र यमदृष्टा कहलाते हैं क्योंकि यह नवरात्र शक्ति संचय की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कहा भी है 'शरत्काले महापूजा क्रियन्ते या च वार्षिकी । पूजा में मनुष्य को काम और अर्थ प्रदान करने वाली दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वश्रेष्ठ होता है। सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक शक्ति सम्पन्न भाग है जो त्रीदेवी नवदुर्गा एवं अष्टोत्तर शत नवदुर्गा के रूप में प्राणी मात्र का कल्याण कर देती है। नवरात्र में साधना एवं व्रत से तन-मन हृदय प्राण एवं बुद्धि की शक्तियां संगठित हो जाती हैं। नवरात्र साधना से हमारी प्राकृतिक शक्ति रूप में संसार का व्यवहार संचालित करती है।


नवरात्र में नव देवियों की अराधना की जाती है। नौ औषधियां मां दर्गा के नौ रूपों का स्वरूप हैं जो लोगों के कष्टों को हरती हैं। प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है इसकी औषधि हरड़, हिमावती है। द्वितीय मां ब्रहमचारिणी अर्थात ब्राहमी, जिनकी औषधि ब्राहमी है। जिन लोगों को इससे सम्बन्धित व्याधि हो उन्हें ब्रहमचारिणी की आराधना करनी चाहिएनवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा जिसकी औषधि चन्दुसूर या चमसूर है। चौथा रूप कुष्माण्डा है, इसकी औषधि है पेठा। पांचवा रूप स्कंदमाता है यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। मां का छठा रूप कात्यायनी है इसकी औषधि मोइया अर्थात माचिका है। मां का सातवां रूप कालरात्रि है यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। मां का आठवां रूप महागौरी जिसकी औषधी को तुलसी के रूप में जाना जाता है। मां का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैंइस प्रकार नवरात्र मानव जीवन के लिए कल्याणकारी होते हैं। हम भी इस अवसर पर शक्ति के त्रिरूपों की अराधना करते हुए विश्व कल्याण की कामना करते हैं।


"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्य, नमस्तस्य, नमस्तस्य, नमो नमः"