पंच दिवसीय पर्व है दीपावली

पंच दिवसीय पर्व है दीपावली



दीपावली वर्ष का, हर्ष एवं उल्लास का दिवस है। भारतीय परम्परा में हमारे मुख्य पर्वो को वर्ण व्यवस्था से भी जोड़कर देखा गया है। होली को क्षुद्रों का, रक्षाबंधन ब्राहमणों का, दशहरा क्षत्रियों का और दीपावली वैश्यों का पर्व माना गया है। इसके पीछे क्या व्यवस्था थी यह कहना कठिन है परन्तु दीपावली को बाजार सजता है, धूमधाम से बिक्री होती है और कुछ स्थानों पर बही खाते भी बदले जाते हैं। मैंने स्वयं देखा है कि मारवाड़ी समाज दीपावली का पूजन बडो श्रद्धा से और लक्ष्मी पूजन स्थिर लगन में बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। पूर्व काल में दीपावली को 'यक्ष रात्रि, सुख रात्रि, सुख सुक्तिका, कौमुदी उत्सव, दीपालिका आदि के नाम से जाना गया है और सामान्यतः इसे सुख एवं आनन्द की प्राप्ति तथा मनोरंजन के उत्सव में देखा गया है। कार्तिक कृष्ण त्र्योदशी से आरम्भ होने वाले दीपावली उत्सव के प्रथम दिन अर्थात त्र्योदशी से आरम्भ कर दीपावली का शुभारम्भ करने का निर्देश शास्त्रों में प्राप्त होता है। धार्मिक शास्त्रीय महत्व के साथ-साथ हर्ष, उल्लास, भौतिक चकाचौंध के चलते यह महापर्व केवल भारत में ही नहीं वरन् विश्व में जहां भी भारतीय रह रहे हैं वहां भी वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जाता है। धर्म की सीमाओं को तोड़ते हुए यह पर्व सभी भारतीय धर्मावलंबियों द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पंच दिनात्मक महापर्व है। इस पर्व का आरम्भ धन त्र्योदशी से होता है और यम द्वितीया अर्थात शुक्ल पक्ष की द्वितीया को इसका समापन होता है। इन पांच दिनों में इसके उत्सव मनाने के भिन्न कारण हैं।


धन तेरस का पर्व 25 अक्टूबर 2019 को मनाया जायेगा। कार्तिक कृष्ण त्र्योदशी को मनाये जाने वाले इस पर्व के निम्नलिखित तीन प्रमुख धार्मिक कर्म होते हैं-1) धनवंतरी का पूजन एवं जयंती उत्सव 2) बर्तन आदि नवीन वस्तुओं का क्रय 3) सायंकाल को दीपदान। 


सूर्योदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण त्र्योदशी 26 अक्टूबर को रहेगी इसलिए धनवंतरी जयंती 26 अक्टूबर शनिवार को होगी। कृष्ण त्र्योदशी चूंकि एक दिन पूर्व 25 अक्टूबर को होगी इस कारण धनतेरस पर किया जाने वाला यम निमित्त दीप दान शुक्रवार 25 अक्टूबर को ही होगा। इसी दिन बर्तन तथा चांदी की वस्तुओं आदि का क्रय भी होगा। इसी दिन यम दीवा संध्या के समय जलाया जायेगा। इसमें तेल डाला जाता है और मुख्य द्वार के समीप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखा जाता है। इससे दीर्घायु प्राप्त होती है, मृत्यु का भय समाप्त होता है ऐसी मान्यता है। दीपावली का दूसरा मुख्य पर्व नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय पर स्नान, सायंकाल में दीपदान किया जाता है एवं इसी दिन हनुमान जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। कृत्य चंद्रिका में वर्णित है कि यमराज को संतुष्ट करने के लिए तिल के तेल से भरे हुए प्रज्जवलित एवं पूजा किये हुए 14 दीपक भिन्न-भिन्न स्थानों पर रखे जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि एक दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर फिर घूमकर उसे न देखें। 


कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है और इसका विशेष महत्व रहा है। देव, पितरों की पूजा भी किये जाने के विधान का वर्णन प्राप्त होता है। इस दिन कुछ लोगों में उपवास करने का भी प्रचलन है। प्रदोष काल में अथवा स्थिर लगन में लक्ष्मी पूजा का उल्लेख हेमाद्री आदि में प्राप्त होता है इसलिए उस समय में लक्ष्मी पूजा का प्रचलन है। यह भी मान्यता है कि अर्द्धरात्रि में लक्ष्मी जी का इस धरा पर विचरण होता है। भविष्य पुराण में एक परम्परा का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि जब आधी रात्रि बीत जाये और लोगों के नेत्र अर्द्धनिद्रा में रहें तब लोगों को सूप अथवा ढोल अथवा अन्य चीज बजाकर अपने घर आंगन से दरिद्रता को यह कहकर, 'भाग दरिद्रता लक्ष्मी आई' दरिद्रता को भगाने का चलन है। पुराने समय में जब राजाओं का राज्य होता था उस समय दीपावली पर राजाओं के भी विशेष कृत्य किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है, जो कि उस समय की परम्पराओं का द्योतक था।


दीपावली का त्यौहार मनाने के दो प्रमुख कारण हैं एक तो यह कि उस दिन रामचन्द्र जी रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या वापिस आये थे और उनके स्वागत में अयोधया में दीप जलाये गये थे और तब से यह दीप जलाने की परम्परा चली आ रही है। यह मान्यता रामभक्तों की है। जो कृष्ण भक्त हैं उनकी मान्यता यह है कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर नरकासुर का वध किया तो दूसरे दिन इसके हर्ष में दीपमालाएं प्रज्जवलित की गयी तब से दीपावली मनाई जाती है। देवी भक्तों के अनुसार समुद्र मंथन के समय कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर लक्ष्मी जी का प्राकट्य समुद्र से हुआ था इसलिए इस दिन महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है तथा उनके स्वागत में दीपमालाएं प्रज्जवलित की जाती हैं।


चतुर्थ दिवस अन्नकूट महोत्सव के रूप में तथा गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट का प्रसाद बनता है। इस दिन गायों की भी पूजा की जाती है।


पंचम दिवस पर भाई दूज मनाया जाता है। इस वर्ष 29 अक्टूबर को भाई दूज मनाई जायेगी। मान्यता के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर बुलाकर सत्कार करके उसे भोजन कराया था। यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक होने का त्यौहार है। भाई बहन के घर जाकर उसके हाथ का भोजन करता है और बहन भाई की पूजा करती है और बहन अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती है।